Sunday, February 22, 2009

जहाँ कोई मौसम नही होता !

(किसी ने कहा की कुछ लोग हीं बे-मौसम होते हैं, उसकी इस बात से ताल्लुक रखते हुए...)

जैसे बे-मौसम आंधियां होती है,
ओले पड़ते हैं
या फ़िर बे-मौसम बरसात होती है
ठीक वैसे हीं
कुछ लोग भी बे-मौसम होते हैं
जो, अपने काल और स्थान से चूक गए होते हैं

सारे ग्रह, राशियां , नक्षत्र और गोचर आदि
अपने जगह से हिल जाती हैं
इक जरा सा गर
रूहें चूक जाती है मौका

फ़िर न वो बदन मिलता है
और ना हीं वो मौका दुबारा फ़िर
एक लंबे समय तक

अपनी नियत देह से बिछुडी
ये रूहें
किसी और देह में अपना उम्र काटती है
कभी मंगल दोष से पीड़ित,
कभी राहू-केतु के चपेटे में
मगर नही मिल पाता उन्हें कभी
शीतल चंद्र का पनाह

वे तमाम उम्र रह जाते हैं यूँ हीं बे-मौसम
उनका मौसम कभी नही आता
वे बस इंतज़ार करते रहते हैं अगले जनम का

6 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

जैसे बे-मौसम आंधियां होती है,
ओले पड़ते हैं
या फ़िर बे-मौसम बरसात होती है
ठीक वैसे हीं
कुछ लोग भी बे-मौसम होते हैं
जो, अपने काल और स्थान से चूक गए होते हैं
बहुत अच्छा लिखा है ....

Anonymous said...

अपनी नियत देह से बिछुडी
ये रूहें
किसी और देह में अपना उम्र काटती है
कभी मंगल दोष से पीड़ित,
कभी राहू-केतु के चपेटे में
मगर नही मिल पाता उन्हें कभी
शीतल चंद्र का पनाह
shayad yahi sach hai.....
bahut hi bhawabhibyakti really
thank you

परमजीत सिहँ बाली said...

ओम आर्य जी,एक अलग अंदाज़ मे आपने अपनी बात को कहा है।बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।बधाई स्वीकाएं।

अपनी नियत देह से बिछुडी
ये रूहें
किसी और देह में अपना उम्र काटती है
कभी मंगल दोष से पीड़ित,
कभी राहू-केतु के चपेटे में
मगर नही मिल पाता उन्हें कभी
शीतल चंद्र का पनाह

vandana gupta said...

kya baat hai om ji aaj to kamaal kar diya.

ओम आर्य said...

shukriya, aap sab ka, bahut..bahut...

Yogesh Verma Swapn said...

om ji bahut badi sachchai bhi likh di hai, bahut sunder, badhai.