Sunday, March 15, 2009

यूँ हीं

1)
तेरी तार छेड़ी थी
और उस सृजित ध्वनि का पीछा किया था
देखा कि
मौन के इश्क में आ पहुंचा हूँ।
२)
जिन लोगों को
नही मिल पाता प्यार,
क्या जयादातर वही लोग
वासना के शिकार नही हो जाते ?
३)
कुछ ऐसे सवाल होते हैं
जो एक के बाद एक दिए गए जबाबों के
पीछे खड़े होते जाते हैं
एक नया सवाल बनाते हुए।
४)
ये कौन है
जो मर जाना चाहता है
और बचे रहना भी
एक ही शरीर में
एक ही समय में ।
५)
नींद के धागे
आँखें नही कातती आजकल
चरखा यूँ हीं पड़ा है
ख्वाब भी नही पहने कई रोज से।

7 comments:

सुशील छौक्कर said...

वाह ओम भाई क्या बात है। दिल खुश कर दिया।

ये कौन है
जो मर जाना चाहता है
और बचे रहना भी
एक ही शरीर में
एक ही समय में ।

नींद के धागे
आँखें नही कातती आजकल
चरखा यूँ हीं पड़ा है
ख्वाब भी नही पहने कई रोज से।

बहुत उम्दा।

अमिताभ मीत said...

कमाल है भाई.

Yogesh Verma Swapn said...

ये कौन है
जो मर जाना चाहता है
और बचे रहना भी
एक ही शरीर में
एक ही समय में ।

bahu khoob , sunder rachna.

संध्या आर्य said...

जिन लोगों को
नही मिल पाता प्यार,
क्या जयादातर वही लोग
वासना के शिकार नही हो जाते ?


कुछ लोग ऐसे भी तो होते है,जो प्यार मिलने के बावजुद भी कुछ लोग वासना के शिकार हो जाते है
ये कौन है
जो मर जाना चाहता है
और बचे रहना भी
एक ही शरीर में
एक ही समय में ।

क्या पंक्तियाँ है मानवियता से लबरेज
इन पंक्तियाँ का कोई मिशाल नही.

हरकीरत ' हीर' said...

तेरी तार छेड़ी थी
और उस सृजित ध्वनि का पीछा किया था
देखा कि
मौन के इश्क में आ पहुंचा हूँ....isq mubarak....!

जिन लोगों को
नही मिल पाता प्यार,
क्या जयादातर वही लोग
वासना के शिकार नही हो जाते ?...Sayad....!!

कुछ ऐसे सवाल होते हैं
जो एक के बाद एक दिए गए जबाबों के
पीछे खड़े होते जाते हैं
एक नया सवाल बनाते हुए....Bilkul sahi kaha aapne....!!!

ये कौन है
जो मर जाना चाहता है
और बचे रहना भी
एक ही शरीर में
एक ही समय में ....sayad andar ka saitan aur insaan...??

नींद के धागे
आँखें नही कातती आजकल
चरखा यूँ हीं पड़ा है
ख्वाब भी नही पहने कई रोज से...ab ye rog aisa hi hota hai jnab....!!!

नीरज गोस्वामी said...

नींद के धागे
आँखें नही कातती आजकल
चरखा यूँ हीं पड़ा है
ख्वाब भी नही पहने कई रोज से।
वह वा...वाह वा...बेमिसाल...लाजवाब भाई...कमाल किया है आपने...बहुत खूब...शब्द और भाव दोनों बेजोड़.
नीरज

पारुल "पुखराज" said...

नींद के धागे
आँखें नही कातती आजकल
चरखा यूँ हीं पड़ा है
ख्वाब भी नही पहने कई रोज से। bahut acchha hai ye !