Friday, June 12, 2009

तुम्हारी खिड़की पे रख दिया करूंगा सुबह!

सुबह-सुबह

अलसुबह

हर रोज , एक सुहानी सुबह

मैं रख दिया करूंगा

तुम्हारी खिड़की पे


तुम ले लेना जाग कर


मैं नहीं चाहता कि

रात भर तुम मेरे साथ

रह कर मेरे ख्वाबो में

किसी और की सुबह से दिन शुरू करो.

19 comments:

Anonymous said...

खूबसूरत ख्याल..

बाल भवन जबलपुर said...

मैं नहीं चाहता कि
रात भर तुम मेरे साथ
रह कर मेरे ख्वाबो में
किसी और की सुबह से दिन शुरू करो.
इस बेमिसाल चाहत में
पवित्रता बेहिसाब है

M Verma said...

khayal achchha hai.
bahut achchhi bhavabhivyakti

Himanshu Pandey said...

आपकी कविताओं की संवेदनात्मक अनुभूतियाँ हतप्रभ करती हैं । मैं सम्मोहित हूँ ।

वाणी गीत said...

अद्भुत!!!

Unknown said...

aanand ki lahar.................
umda kavita !

संध्या आर्य said...

सही आपकी भावनाये इतनी कोमल होती है कि हमे
बार बार पढने के लिये सम्मोहित अवश्य करती है

कविता के भाव मे पवित्रता भी कुट कुटकर भरी रहती है ....
अतिसुन्दर

महुवा said...

gazab....!!

Ashok Kumar pandey said...

कविता के शीर्षक ने बडी उम्मीदें जगा दी थीं मित्र
पर आपने पता नहीं क्यों इतनी जल्दी ख़त्म कर दिया फसाना।

निर्मला कपिला said...

वाह लाजवाब अंदाज़ शुभकामनायें

दिगम्बर नासवा said...

निः शब्द........ओम जी.....आप शब्दों को बुनते हैं....अपने रंग डाल कर, खूबसूरत रंग बना देते हो........ बहुत दूर तक जाती है आपकी कविता...... गहरे उतरती है........ लाजवाब

vandana gupta said...

khoobsoorat khayal......shandaar

Pratibha Katiyar said...

khoob!

डॉ. मनोज मिश्र said...

बढियां अंदाज़ .

शोभना चौरे said...

ache bhav

Anonymous said...

सुबह को खिड़की पे रखने का ख़याल बहुत अच्छा है....उम्दा रचना.....बधाई हो....

साभार
हमसफ़र यादों का.......

Yogesh Verma Swapn said...

umda tasavvur. badhai.

सर्वत एम० said...

आर्य जी, कविता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सम्प्रेषण कठिन न हो. आप ने तो सरलतम शब्दों में इतनी बड़ी बात कह डाली है जो बहुतेरे महाकाव्य लिख कर भी सम्प्रेषित नहीं कर पाते. मैं मस्का नहीं लगा रहा, जो दिल ने महसूस किया, वही बता रहा हूँ.

gazalkbahane said...

मैं नहीं चाहता कि

रात भर तुम मेरे साथ

रह कर मेरे ख्वाबो में

किसी और की सुबह से दिन शुरू करो.
अनन्यतम्‌ अभिव्यक्ति
श्याम

बातें उनकी हुई झिड़कियों की तरह
जख्म मेरे खुले खिड़कियों की तरह